साल 1995 जून का महीना और TATA Sumo। ये कहानी उस लड़के की है जिसके पिता जी को बरसो पहले किसी शहर के सज्जन ने ये कहा था की “तोर औकात का बा! एगो टायर खरीदे के पैसा बा की जीप के सपना देखत बाड़े”। उस समय लड़के के पिता ने कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन चेहरे पर साफ-साफ दिख रहा था की अंदर ही अंदर पिता जी को कितनी चोट पहुंची है। उस दिन के बाद लड़के ने यानी राजेश ने ये ठान लिया की पिता जी को एक दिन जीप दिला कर ही चैन लूंगा।
साल 1995 6 जून सुबह के 6 बजे होगें मेरी नींद खुली तो बाहर हो हल्ला हो रहा था। करीब गांव के 30 लोग सूट बूट में खड़े थे, मानों जैसे किसी का बारात जा रहा हो। नीचे आया तो राजेश चाचा वो भी तैयार थे, बाबा जी भी। मैं जल्दी से मां के पास गया और पूछा “का भइल बा आम्मा एतना लोग दूआर पर खाड़ा बाड़े, केहू के बारात जाता का हो!” मां ने कहा ना बाबू आपन गाड़ी खरीदाए जाता। ये सुनते ही मानों मेरे पैर में किसी ने पहिए फिट कर दिए हो। बिना किसी से पूछे मैं भी तैयार हो गया और पहले ही बाहर जाके उन 30 लोगों के भीड़ में शामिल हो गया। इतने में दादा जी की नजर मेरे ऊपर पता नहीं कहा से पड़ गई और उन्होनें मेरे जानें का प्रोगाम कैंसिल कर दिया।
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रोया चिलाया लेकिन जानें नहीं दिया गया। उस दिन दादी के चेहरे पर एक अलग ही रौनक थी। उस जमानें में कम गाड़ियां हुआ करती थी। मैने मां से पूछा “अम्मा कौन गाड़ी किनाए गइल बा हो!” मां ने कहा कउनो सूमो गाड़ी हीय उहे आई”। फिर खाना खाकर गाड़ी के इंतजार में मां के गोद में सो गया। नींद खुली तब भी गाड़ी आई नहीं थी, अचानक हॉर्न की अवाज आई और सफेद रंग की बड़ी गाड़ी दरवाजे के सामने लगी। गाड़ी से ज्यादा हैरानी मुझे ये देख कर हुई की एक गाड़ी लेने के लिए गांव के 45 लोग गए थे। गाड़ी को देखते ही मैं उसमें जाकर बैठा फिर खेलने लगा, लेकिन मां बताती है की जब मै खेल रहा था तब गांव के आधे लोग राजेश चाचा को शाबाशी दे रहे थे। उनका कहना था की अपने बाप का बदला लिए हो तुम, सब अपने-अपने घर चले गए। शाम के 6 बजे थे मां और चाची सब्जी काटने के लिए बैठी ही थी की चाचा ने कहा की आज खाना सब लोग बाहर खाएगे।
सब लोग ऐसे तैयार हो रहे थे जैसे किसी की शादी में जाना हो। दादा जी मैं और चाचा गाड़ी के आगे वाले सीट पर बैठे और बाकी के लोग पीछे। कुछ दूर चलने के बाद मैने एक बटन प्रेश किया और ठंडी हवा आने लगी मैं डर गया था की शायद मैनें गाड़ी खराब कर दी। लकिन बाद में पता चला की एसी का बटन दबा दिए थे। उस दिन पता नहीं क्यों सबने रोज के मुकाबले कम खाना खाया था। रात को घर आने के बाद मां मुझे कहानी सुना कर सुला दी।
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